27 मार्च 2013

मां का आंचल



मां रेवा का आंचल आज भी पहले की तरह फैला हुआ था. नर्मदा प्रसाद भागते हुयें आया और धड़ाम से जाकर उसके आंचल में जा गिरा. मां रेवा ने अपना ममतामयी हाथ जब उसके सिर पर फेरा तो वह रो पड़ा. वह कुछ पुछना चाहता था लेकिन उसे जोर की भुख लगी थी. मां रेवा समझ चुकी थी कि उसका लाड़ला भुख से व्याकुल हो रहा है उसने उसके लिए भोजन की थाल परोस दी. भरपेट खाना खाकर वह फिर सो गया. वह ऐसा सोया कि अपने साथ लायें अनेक सवालों को वह भूल गया. जैसे ही भोर होने को आई कि उसे एक बार फिर मां रेवा ने नींद से जगाते हुयें कहा ‘ बेटा नर्मदा जरा उठ तो देख बेटा भोर होने वाली है. जा अपने मालिक के घर वहां उसके कोठे में बंधी पड़े गाय के बछड़े उनके छुटने का इंतजार कर रहे होगें …….! अगर तू नहीं गया तो वे बेचारे भुखे रह जायेगें ……..! सुन  बेटा नर्मदा उन्हे भी तेरी तरह उनकी मां से मिल कर अपनी भुख प्यास को शांत करना है……….. !
अधकचारी नीदं से अलसाय हुयें नर्मदा की बार तो इच्छा हुई कि वह मना कर दे ……… पर उसे तो जाना ही होगा क्योकि उसका मालिक बड़ा ही निर्दय और जालिम किस्म का है. वह जानता है कि एक दिन अगर कोठे से जानवर नहीं छुटेगें तो उसका मालिक उसे मार मार कर लहु लुहान कर देगा. वह डर के मारे उठ कर अपने मालिक के घर की ओर सरपट भागा. उसे आज इतनी जल्दी थी कि वह यह तक भूल गया कि वह यह तक भूल गया कि वह मां रेवा से आज क्या पुछने के लिए आया था.
पौराणिक कथाओं में सदियों से देवी देवताओं की आरध्य रही जगत तारणी पूण्य सलिला मां नर्मदा को रेवा भी कहा जाता है. इसी जग कल्याणकारी मां रेवा के किनारे बसे एक छोेटे से गांव में रहने वाला नर्मदा प्रसाद करीब बीस साल पहले आई बाढ़ में अपने माता – पिता के साथ बहते हुयें इसी गांव के गोपाल मछुआरे को मिला था. नर्मदा प्रसाद के माता -पिता पहले ही दम तोड़ चुके थे. उनकी बहती लाश के साथ नर्मदा प्रसाद भी मछली की तलाश में जाल बिछायें गोपाल के जाल में आकर उलछ गया. गोपाल ने उसे बाहर निकाल कर फेकना चाहा लेकिन उसे उस नन्हे सी जान के शरीर में हलचल होती दिखाई दी. गोपाल अपने मछली के जाल को वही छोड़ कर उस बच्चे को लेकर गांव की ओर सरपट भागा. कुछ दिनो तक चले गांव के वैद्य के इलाज के चलते नर्मदा प्रसाद बच गया लेकिन वैद्य ने गोपाल को चेताया कि इस बच्चे को नदी के पानी से बचायें रखना. पानी देख कर इस बच्चे का शरीर अपने आप हिचकोले मारने लगेगा.
इस रहस्य को गोपाल ने किसी को नही बताया. आज इस घटना को लगभग बीस साल हो गये. ना तो गोपाल उस रहस्य को जान पाया कि उसके बाबा उसे नदी के किनारे जाने से क्यो रोकते थे. नर्मदा कई बार अपने बाबा को बिना बताये एक रहस्य को आज तक छुपायें रखा था कि वह जब भी मां रेवा के किनारे बहती धारा को एकटक निहारता था तो उस बीच धार में एक महिला अपनी बांहे फैलाये उसे अपनी ओर बुलाती थी. जब वह उसकी ओर जाता था तो नदी में अपनी आप रास्ता बन कर निकल आता था. उसे वह महिला कई बार अपने हाथों से  नाना प्रकार के पकवान खिलाती थी तथा अपने ही आंचल में सुलाती थी. उसे जब तक वह इस रहस्य को समझ नहीं सका तब तक ऐसा होता था. लेकिन एक दिन उसे नदी की ओर जाता उसके बाबा ने देख लिया तो उसके बाबा ने उसे बहुॅंत डाटा फटकारा तब से वह नदी के किनारे नही जाता था.
नर्मदा यह नहीं जान सका था कि उसके बाबा उसे क्यों नदी की ओर जाने से रोकते थे तथा नदी कह बीच धारा में बाहे फैलाये उसको बुलाने वाली महिला कौन है. उस महिला से उसका क्या नाता है. नर्मदा के अपने माता – पिता कौन थे इस बारे में उसे कोई जानकारी नही थी. पर उसने गंाव वालों के मुह से सुना था कि बाबा उसके पिता नही है. आज उसके बाबा भी अब इस दुनिया में नहीं रहे. एक रात जब उसे अपने बाबा से जिद करके यह जानने की कोशिश की कि बाबा आप मुझे क्यों नदी के किनारे जाने से रोकते है. तब उसके बाबा ने कहा कि वह कल उसे उस राज को बता देगा जो कि बरसो से उसके दिल के किसी कोने मेे दबा पड़ा है. कल सुबहउठ कर वह अपने बाबा से उस रहस्य को जान पाता इसके पहले ही उसे सुबह उठ कर गंाव के जमींदार के कोठे पर जाकर गाय बछड़ो को छोडना था. अपने वादे के मुताबिक गोपाल उस राज को बताने के पूर्व ही उस दिन चल बसा.
गोपाल बाबा उसे नर्मदा प्रसाद कह कर पुकारते थे.  अपने के नाम के पीछे बाबा कहा करते थे कि बेटा तू मां कौन है ……..! किस जाति का है ………….!  किस गांव का है …………..! तेरे कौन रिश्तेदार है ……………? मैं नहीं जानता. तू मुझे मां नर्मदा की साठ साल की सेवा के बदले में मिला प्रसाद है इसलिए तू मेरा नर्मदा प्रसाद है………! गोपाल के मरने के बाद गंाव वालों ने इस एक बार फिर अनाथ हुयें नर्मदा प्रसाद के बारे में जांच पड़ताल की पर किसी को यह तक नही मालुम कि बाढ ़में बहता मिला यह बच्चा किसका था……? लगभग बीस साल पहले भी गांव वालों ने आसपास के गांवों तक मुनादी करवा दी थी कि जिसके भी परिवार के लोग बाढ़ में बह गयें हो वे आकर इस बच्चे के बारे में जानकारी देकर उसे ले जाना चाहे तो ले जा सकते है. लेकिन कोई नही आया तो गोपाल मछुआरे ने उसे अपने बेटे की तरह पाल पोश कर बड़ा किया था. गोपाल बाबा के मरने के बाद नर्मदा प्रसाद ने जमीदार के घर की नौकरी छोड़ दी वह अपने बाबा के पुश्तैनी काम को करने का बीड़ा उठा कर वह नही की ओर चला गया.
आज एक बार फिर मां रेवा में बाढ़ आई थी. उसका पानी हिलांेरे मार कर इस किनारे से उस किनारे तक अठखेलिया कर रहा था. नर्मदा प्रसाद को ऐसा लगा कि नदी की बीच धारा कोई महिला बाहें फैला कर उसे आंखों के छलकते आंसुओं से पुकार रही है. काफी देर तक उस महिला को अपनी ओर बाहें फैला कर पुकारते देख नर्मदा प्रसाद का शरीर हिचकोले मारने लगा. वह ऊफनती रेवा की बीच धारा में उसे पुकार रही महिला की ओर सरपट भागा. उसे पानी में भागते देख उसके संगी साथी गांव की ओर बद्हवाश से भागे. कुछ ही पल में पुरा गांव मां रेवा के किनारे जमा हो गया. गांव वाले शाम तक रहे पर किसी को भी नर्मदा का अता पता नही मिला तो गंाव वाले खाली हाथ वापस लौट कर आ गयें. गांव वाले कहने लगे बेचारा नर्मदा जहॉ से आया वहीं चला गया. नर्मदा के इस तरह नदी में बह जाने से पुरे गंाव में आज रात किसी के घर पर चुल्हा नही जला. सबके सब उदास थे. लोगो की आंखों के आंसु झर झर कर बह रहे थे. सारे गंाव वाले को आज ऐसा लग रहा था कि उसके परिवार का कोई सदस्य बह गया हो. आज की रात लोगो को पहाडत्र जैसी लग रही थी. कई लोगो ने तो रात भर सोच सोच कर काट ली. हर कोई नर्मदा को लेकर परेशान था.
खुले आसमान के चांद तारों को देख कर रात के पहर कटने के इंतजार करने वाले लोगो को जैसे ही भोर के होने की आहट हुई लोग अपने घरों से बाहर की ओर निकल पडें. हर कोई एक दुसरे की आंखों में झांक कर एक दुसरे को बताना चाह रहा था कि उसने इस काली अमावस्या जैसी रात को कैसे काटा है. गांव वाले अपने घरों से बाहर निकल कर रेवा के किनारे जाकर नर्मदा को तलाशते इसके पहले ही उन्हे रेवा के तट की ओर गंाव को आते रास्ते एक युवक आता हुआ दिखाई दिया. पास आने पर ऐसा लगा कि आने वाला कोई नही अपना नर्मदा है तो सारा गांव खुशी के मारे उसकी ओर दौड़ पड़ा.
नर्मदा को जिंदा देख कर गांव की महिलाआंे के अंाचल भर आयें. गांव वाले दिल धडकने लगे. नर्मदा को जिंदा देख कर सब के सब प्रसन्नचित थे वही हर छोटे बडें सबके चेहरे पर एक जिज्ञासा झलक रही थी कि नर्मदा तू रात भर कहॉ था………?  वह मंा रेवा की ऊफनती धारा की ओर क्यों भागा था…..!  उसके साथ क्या हुआ…….! नर्मदा ने इस तरह सारे गांव वालों  को अपनी ओर जिज्ञासा भरी निगाहों से देख तो वह कुछ पल के लिए डर गया. उसने डरते डरते गंाव वालों से पुछा  पुछा इतनी सुबह पुरा गंाव कहॉ जा रहा है……..? उसके सवालों को सुन कर केतकी आजी रो पड़ी उसने नर्मदा के सिर पर हाथ फेर कर कहा बेटा हम तुझे ही ढुढ़ने जा रहे थे…….! तू रात भर से घर नहीं आया था……..! कल तेरे साथ गयें कुछ लड़को ने तुझे ऊफनती रेवा की बीच धारा में भागते हुयें देखा तब से पुरा गांव परेशान है.
केतकी आजी के बताने पर कुछ याद आया.उसने बताया कि कल जब वह रेवा के किनारे मछली का जाल बिछाने गया था तब उसने देख कि नदी में बाढ़ आई थी. नदी की बीच धार में कोई महिला मुझे बांहे फैला कर अपनी ओर बुला रही है ………! मैं उसकी ओर भागा……. उसके बाद मुझे पता नही कि क्या हुआ………..? मुझे जब होश तब मैंने अपने आप को नदी के  दुसरे छोर पर पाया.मुझे आसपास चीखते सन्नाटे में समझ आया कि मैं जिस स्थान पर लेटा हू उसके आसपास कोई नदी बह रही है. दिमाग पर काफी जोर देने के बाद मुझे पता चला कि मैं जिस स्थान पर लेटा हुआ था उससे चार पांच फंलाग की दूरी पर मां रेवा बह रही है. मुझे डर लग रहा था मैं थर थर कर कांपते कांपते खुले आसमान में चन्द्रा के प्रकाश में उस भयावह चीखते सन्नाटे को चीरते हुयें नदी के किनारे आने के लिए निकल पड़ा . खुले आसमान में दिखने वाली चांदनी बता रही थी कि रात का तीसरा पहर बीत चुका है. चौथे पहर के शुरू होते ही मैंने अपने घर की ओर आने का मन बना कर मै जैसे नदी के किनारे आया तो मेरी सिटट्ी पिटट्ी गुम हो गई. कल की तरह आज भी मां रेवा पुरे उफान पर बह रही थी.चन्द्रमा के प्रकाश में साफ दिख रहा था कि मां रेवा नदी की धार में काफी बहाव था. नदी अपने अपने दोनो किनारों के उपर से बह रही थी. मुझे इस नदी पार करके गांव की ओर आना था. मुझे तो तैर कर नदी पार करना भी नहीं आता था. अब मेरे लिए नदी पार करके आना बड़ा ही कठीन काम था. मैं इसी उधेड़बुन में कुछ सोच रहा था कि मुझे ऐसे लगा कि कोई मेरा नाम लेकर पुकार रहा है.
मैने आसपास चारों ओर चन्द्रमा के प्रकाश में अपनी निगाहे घुमा कर देखा तो मुझे कोई भी दिखाई नहीं दिया. सुनसान इलाके में जब किसी ने मेरा नाम लेकर एक बार फिर किसी ने मुझे पुकारा तो घबरा गया. इस बार की आवाज किसी महिला की थी. मैं उस अपरिचित महिला की आवाज को पहचानने की कोशिस कर रहा था कि इतने में वह आवाज एक बार फिर मुझे सुनाई दी. वह अपरिचित आवाज मुझसे कह रही थी बेटा ‘ नर्मदा तू उस पार जाना चाहता है तो , नदी की बीच धार को पार करके चले आ. ’ मैं नदी के किनारे को छुती उसकी धार तक आने की हिम्मत तक नहीं कर पा रहा था. ऐसे में किसी ने मेरी किसी अदृश्य परछाई ने मेरी बांह पकड़ी और मुझे नदी की धार तक ले आया. मैंने जैसे ही नदी में पांव रखा कि चमत्कार हो गया . नदी के बीचो बीच में एक पगडंडी निकल आई जिस पर मैं चलकर नदी के इस छोर से दुसरे छोर तक चला आया. मैने जैसे पलटकर देखा तो मां रेवा उसी गति से शोर मचाती बह रही थी. मैं नदी पार कर सीधा चला आ रहा हूॅं.
नर्मदा की बात को सुन कर गांव वालों का आश्चर्य का ठिकाना नही था. इतने साल से मां रेवा के किनारे रहते हो गयें लेकिन उन्हे आज तक मां रेवा ने कभी दर्शन तक नहीं दियें और इस लड़के की किस्मत तो देखियें कि यह उसकी गोद में खेल आया है. नर्मदा की बताई बातों को ध्यान पूर्वक सुन रहे पुरे गांव को जैसे लकवा मार गया. गांव वालों के लिए नर्मदा की बताई बाते किसी अनहोनी घटना से कम नही थी. पुरा गंाव नर्मदा की बातों को सुन कर नर्मदा मैया की जय जय कार करते नदी के किनारे की ओर दौड़ पड़ा.आज इस घटना को बीते कई साल हो गयें लेकिन गांव में अब भी मां रेवा के किनारे एक घास फुस की झोपड़ी बना कर रह रहा नर्मदा को विश्वास है कि वह एक बार अपनी अंतिम सांस मां रेवा के आंचल में ही लेगा. उसे हर पल इंतजार है कि कब मां रेवा उसे एक बार फिर पुकार कर कहे बेटा नर्मदा आ अब विश्राम कर ले.
साभार

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