28 मार्च 2013

आस्था के नाम पर अंधविश्वास का खुल्लमखुल्ला खेल

आज जहां वैज्ञानिक ब्रह्मांड की उत्पत्ति वाले कण की खोज कर भगवान के करीब पहुंच चुके हैं, वहीं पश्चिम चंपारण जिले के वाल्मीकि नगर स्टेशन के समीप गोबरहिया गांव में एक बाबा द्वारा भूतों का मेला लगाकर आस्था के नाम पर अंधविश्वास का खुल्लमखुल्ला खेल खेला जा रहा है। यह मेला प्रत्येक माह पूर्णिमा के दिन लगता है। इस मेले में नेपाल, उत्तर प्रदेश और बिहार के कई जिलों से हजारों की संख्या में पीड़ित महिलाएं आकर बाबा के दरबार में दुआ की भीख मांगती हैं।
आस्था के नाम पर लगने वाले इस मेले में आने वाले पीड़ितों की फेहरिस्त हर बार लंबी होती जाती है। पीड़ित महिलाओं की झाड़-फूंक के बाद भूत भगाने के लिए बाबा द्वारा पेड़ में कील ठोंककर बांध दिया जाता है। वाल्मीकि नगर व्याघ्र परियोजना के अधीनस्थ गोबरहिया गांव में चार वर्ष पूर्व मिट्टी की पीड़िया बनाकर एक पीपल के पेड़ के नीचे पूजा शुरू हुई थी। धीरे-धीरे अंधविश्वास का जाल फैलता गया और धर्म के नाम पर भूतों से निजात दिलाने का ठेका इस बाबा ने ले लिया।
बाबा कैसे करते हैं पीड़ितों का इलाज
पूर्णिमा के एक दिन पहले हजारों की संख्या में महिलाएं मेला में पहुंच जाती हैं। अगले दिन अल सुबह गांव के समीप स्थित एक तालाब में स्नान करती हैं, उसके बाद पीपल के पेड़ के नीचे कतारबद्ध होकर वहां गाड़े गये ध्वजा की तरफ ध्यान लगाकर बैठ जाती हैं। इसी बीच पुजारी हरेन्द्र दास उर्फ लालका बाबा आते हैं और लाइन में बैठी पीड़िताओं को एक कुआं से जल निकालकर पीने के लिए देते हैं। जल पीने के बाद महिलाओं पर भूत का नशा सवार हो जाता है। इसके बाद वे झूमने और तरह-तरह की हरकतें शुरू कर देती हैं।
पीड़ित महिलाएं जमीन पर हाथ-पैर पटक-पटक कर चिल्लाने लगती हैं, वहीं अपने सिर को हिला-हिलाकर गीत गाने लगती हैं। इस क्रम में उनके खुले बाल और चेहरे को देखकर ऐसा लगता है कि मानो भूत इन महिलाओं पर सवार हो गया है। बाबा कुछ देर बाद महिलाओं को फिर जल पिलाते हैं। इसके बाद वे थोड़ी देर के लिए शांत पड़ जाती हैं। फिर देर रात झांड़-फूंक के बाद बाबा के द्वारा पीपल के पेड़ में एक-एक कील ठोंककर यह कहा जाता है कि तीन बार यहां आने के बाद भूत खुद ही भाग जाएगा।
अय्याशी भी करते हैं बाबा
मेले में आने वाली महिलाओं के साथ बाबा द्वारा अय्याशी करने की भी सूचना है। बाबा संभ्रांत परिवार की वैसी महिलाओं को अपना निशाना बनाते हैं, जिन्हें बेटा नहीं हो रहा हो या फिर शादी के बाद उनका पति परदेश चला गया हो। हालांकि, इस बात की कहीं से पुष्टि नहीं हुई है, लेकिन बाबा की अय्याशी स्थानीय लोगों में चर्चा का विषय बनी हुई है। बहरहाल, विज्ञान के नित्य नये खोजों के बीच अंधविश्वास के प्रति बढ़ रहा आस्था का यह खेल कई सवालों को जन्म दे रहा है।

साभार

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें